बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

बर्फ़ीले मौसम में मखमली घास का स्मरण!


ये तारीख़ केवल एक बार आती है चार वर्षों में... चलो, कम से कम आती तो है एक निश्चित अंतराल के बाद...; जीवन में तो न निश्चितता है... न कोई एक निर्धारित अंतराल है जिसके बाद खुशियों की राह तकी जा सके! ज़िन्दगी तू ऐसी क्यूँ है?
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रास्ते में जितने कांटें हैं सबसे आहत होने को तैयार हैं हम... फूल खिलें तो सही.
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आँधियों में पेड़ गिर जाते हैं... दूब सुरक्षित ही रहती है सदा, धरती से चिपकी हुई जो है.
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बर्फ़ीले मौसम में मखमली घास का स्मरण जाने क्यूँ बड़ा मोहक लग रहा है...
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